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|| रक्षाबंधन ||


के आज कुछ नाराज़ सा हूँ मैं
चल रहा हूँ चेहरे पे मुस्कुराहट लिए,
 ना तुम आयीं, न चल पड़ा मैं
त्यौहार गुमसुम सा... दूर ही से मना लिए...! 


याद करता हूँ वो बचपन
साथ साथ जब खेला करते थे,
वह हमारा घर और वो आँगन
सुख़-दुःख जहाँ बांटा करते थे...!


वक़्त की थपकियों ने ख्वाब से जगाया फ़िर ऐसे
जैसे नींद टूटे और आँख अचानक से खुल जाएं,
जूझतें रहते हैं दोनों भी दिनबदिन ज़िन्दगी की से
दुआ इतनीसी हैं, दिलों मैं प्यार बरकरार रह जाए
…!


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